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शोध व प्रस्तुति: लखीचंद जैन
[आधुनिकतम बाइस्कोप]
देखो, देखो, देखो, देखो
दिल्ली का कुतुब-मीनार देखो
आगरे का ताजमहल
बम्बई का बाजार देखो
देखो, देखो, देखो
यदि आपने बचपन में बाइस्कोप पर कोई प्रस्तुति देखी हो तोबाइस्कोप का जिक्र होते ही ऊपर की यह पंक्तियॉ जुबान पर आ जाती हैं | 1980 के दशक तक भारत में बाइस्कोप का बडे स्तर पर प्रचलन था | मनोरंजन हेतु प्रयोग में लाये जाने वाला यह यंत्र काफी वर्ष पहले भारत के गॉंव देहातों मे मेलों तथा साप्ताहिक बाजार के दिन चौक-चौराहें पर देखने मिलता था | बाईस्कोप में चित्र श्रृंखला के माध्यम से कथा दिखाई जाती थी | और इस यंत्र को चलाने वाला उस कथा को गाकर सुनाता था | चित्रों के जरिए विभिन्न विषयों तथा अपने आसपास के रंग-रंगीले जीवन के पहलुओं से बच्चों को अवगत कराया जाता था |
उन दिनों, आज की  तरह के टेलिवीजन, सिनेमॅक्स जैसे आधुनिकतम मनोरंजन के दृक-श्रव्य माध्यम तथा यो-यो, बेब्लेड, गेमबॉय, प्ले-स्टेशन, आयपॉड, टॅबलेट जैसे खिलौने या संवाद के साधन नहीं थे | केवल बाइस्कोप एक मात्र यंत्र था जिससे बच्चों का मनोरंजन होता था | अनूठे ढंग का यह यंत्र अब दुर्लभ हो गया है |
मोहनदास करमचन्द गाँधी ने भी अपने किशोरावस्था में बाइस्कोप पर मातृ-पितृभक्ति पर आधारित श्रवणकुमारकी प्रस्तुति देखी थी |
'खोज गाँधीजी की' संग्रहालय में देश का सबसे बड़ा और आधुनिकतम बाइस्कोप देखने को मिलता है | इस बाइस्कोप मे लगे LCD परदों पर एक साथ आठ दर्शक गाँधीजी के बचपन पर आधारित प्रस्तुति को देख सकते हैं | इसे विकसित करते समयबाइस्कोपकी मूल विशेषताओं को कायम बनाये रखा है | उस पर उजले रंगों में पशु -पक्षी, तरह तरह के फुल - पत्तों की डिजाइन बनायी हुई है |

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