जरुरतें और लालसा
म्युज़ियम में पहले हम इंटरैक्टीव टच स्क्रीन तथा वीडिओ फिल्म के जरिए अपनी जरुरतें, लालसा और उसके परिणामों के विषय में जानते हैं | इसके
बाद मोहनदास करमचन्द गाँधी के
बचपन के बारे मे जानने के लिए आगे बढते हैं
|
बचपन
गाँधीजी का बचपन
पोरबन्दर और राजकोट मे बीता | इस खण्ड में तत्कालीन परिवेश और वातावरण को आप पैनल्स के जरिए अनुभव कर सकते है | ‘बाईस्कोप’ से उनके बचपन के कुछ
प्रसंगो को फिल्मों के जरिए दिखाया गया हैं |
कहानियों की अनूठी प्रस्तुति
किशोरावस्था में
गाँधीजी ने ‘राजा हरिश्चंद्र’ तथा ‘श्रवण-पितृभक्ति नाटक’ कहानियों को पढ़ा और
देखा था | वे इन से बहुत प्रभावित हुए थे | इनको हम फ्लिप इंटरैक्टीव टेक्नालॉजी के जरिए देख सकते हैं और पढ़ भी सकते
हैं |
गलतियों को स्वीकारना
बचपन में गाँधीजी एक मित्र की संगत के कारण कई बुरी आदतों के शिकार हो गए थे | जिसमें मांस खाना, पैसे चुराना, बीडी पीना प्रमुख
हैं | जैसे ही उन्हें इन गलतियों का अहसास हुआ, उसे
छोड़ दिया और फिर कभी नहीं दोहराया |
विलायत में पढाई
गाँधीजी ने विलायत
में जाकर बैरिस्टर की पढ़ाई पूरी की
| ‘‘मैं अपने सदाचार से सभ्य समझा जाऊँ तो ठीक है, नहीं
तो यह लोभ मुझे छोड़ना चाहिए"
यह विचार उनके मन में आया | उन्होंने विलायती रहन-सहन छोड दिया | उनके विलायत के जीवन शैली
को इंन्स्टालेशन के जरिए प्रस्तुत किया गया
है |
पौधे से वृक्ष में
परिवर्तन
बचपन की कहानियों, अन्य घटनाओं से सबक सीख कर
गाँधीजी ने
‘सत्य
और अहिंसा ’ को
अपना लिया | यह छोटा पौधा धीरे-धीरे एक विशाल
वृक्ष मे बदलते गया | इस अनूठे वृक्ष की छाया में बैठकर आप दृक्-श्रव्य प्रस्तुति
के माध्यम से इस
का अनुभव कर सकते हैं |
रंगभेद के खिलाफ
आन्दोलन
दक्षिण अफ्रीका में गाँधीजी को
रंगभेद का अनुभव हुआ
| उसको
मैपिंग प्रोजेक्शन
तथा एनिमेशन टेक्नालॉजी के
जरिए
दिखाया गया है
| पीटर मेरित्सबर्ग मे
ट्रेन से धक्का मार कर उतारने
की घटना का उन पर गहरा असर हुआ
| जिससे
प्रेरित होकर उन्होंने रंगभेद के खिलाफ आन्दोलन छेड दिया |
चम्पारन में
सेवाकार्य
दक्षिण अफ्रीका से
लौटने के
बाद गाँधीजी समाज सेवा तथा स्वातंत्रता
आन्दोलन में
जुट गये
| अहमदाबाद
के साथ उन्होंने
बिहार के चम्पारन की तिनकठिया प्रथा को जड़ से मिटा दिया | इस खण्ड में प्रदर्शित डिस्प्ले पैनलों के जरिए स्वतंत्रता आन्दोलन में उनके प्रयासों तथा आश्रम के कार्यों का आप अनुभव
कर सकते हैं |
जालियाँवाला बाग हत्याकाण्ड
पहले
गाँधीजी का
मानना था कि, अंग्रेजों की हुकूमत से ही हमारे
देश का भला हो सकता है
| लेकिन
अमृतसर के जालियाँवाला बाग में हुई हिंसा के बाद उनकी सोच में बदलाव आया और उन्होंने
अंग्रेजों के खिलाफ
‘असहयोग’
आन्दोलन छेड़ दिया
|
स्वदेशी को बढावा
जालियाँवाला बाग में हुए नर संहार के बाद
‘असहयोग’ आन्दोलन
धीरे-धीरे व्यापक
होता गया
| इसमें विदेशी कपड़ों की होली जलाई जाने लगी
| जिससे
भारतीयों में स्वदेशी को अपनाने की भावना जगी |
एकांत की राह
धीरे-धीरे सभी
विचारधाराओं के लोग स्वतंत्रता आन्दोलन से जुडते चले गये | कुछ लोगों का मानना था कि, हिंसा से ही हमें आजादी मिल सकती है | इस
सोच कारण अनेक क्षेत्रों हुई हिंसा से निराश होकर उन्होंने आन्दोलन को रोक
दिया और एकांत
में चले गए | उनको पक्का विश्वास था कि, केवल अहिंसा का मार्ग ही देश को आजादी दिला सकता हैं |
करों का बोझ
अंग्रेजों द्वारा लगाये
गये करों से
आम आदमी बदहाल था
| जिसके
कारण उनके
मन में अंग्रेजों के खिलाफ असंतोष
बढता गया | इस खण्ड में प्रदर्शित की हुई
शिल्पकृति में
आम आदमी करों के बोझ से दबता
दिखाया गया है | इसी दौरान गाँधीजी
ने दांडी मार्च भी
निकाला
था |
सत्य ही ईश्वर है …
स्वतंत्रता आन्दोलन
के दृश्य, गाँधीजी
के जीवन से जुडी घटनाओं को श्वेत-श्याम तस्वीरों के जरिए प्रस्तुत किया
है | काले चौकोर स्तंभ पर ‘सत्य’
से सम्बंधित उनकी पक्तियां
उकेरी हुई
है | कस्तुरबा गाँधीजी के देहांत पर गाँधीजी के
मनःस्थिति की
एक चित्र के माध्यम से सजीव
किया गया है
|
चरखा गैलरी
अंत में, एक
चरखा गैलरी है | इसमें नऐ-पुराने
ढंग के कई चरखे रखे हुए है |
समयानुसार
चरखों
का परिवर्तन यहाँ देखने को मिलता
है | साथ
ही Hyper
Realistic पध्दति से विकसित की हुई गाँधीजी की सजीव शिल्पकृति
भी यहाँ
है |
बच्चों से प्रेम
ऑडिटोरियम की बाहरी दीवार पर गांधीजी बच्चों
से कितना प्रेम करते थे, इसका अनूठा चित्र उकेरा हुआ है |
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