Monday 24 September 2012

Museum Tour

 

जरुरतें और लालसा
म्युज़ियम में पहले हम इंटरैक्टीव टच स्क्रीन तथा वीडिओ फिल्म के जरिए अपनी जरुरतें, लालसा और उसके परिणामों के विषय में जानते हैं | इसके बाद मोहनदास करमचन्द गाँधी के बचपन के बारे मे जानने के लिए आगे बढते हैं |
बचपन
गाँधीजी का बचपन पोरबन्दर और राजकोट मे बीता | इस खण्ड में तत्कालीन परिवेश और वातावरण को आप पैनल्स के जरिए अनुभव कर सकते है | ‘बाईस्कोप’ से उनके बचपन के कुछ प्रसंगो  को फिल्मों के जरिए दिखाया गया हैं |
कहानियों की अनूठी प्रस्तुति
किशोरावस्था में गाँधीजी ने राजा हरिश्चंद्रतथा श्रवण-पितृभक्ति नाटक कहानियों को पढ़ा और देखा था | वे इन से बहुत प्रभावित हुए थे | इनको हम फ्लिप इंटरैक्टीव टेक्नालॉजी के जरिए देख सकते हैं और पढ़ भी सकते हैं
गलतियों को  स्वीकारना
बचपन में गाँधीजी  एक मित्र  की संगत के कारण कई बुरी आदतों के शिकार हो गए थे | जिसमें मांस खाना, पैसे चुराना, बीडी पीना प्रमुख हैं | जैसे ही उन्हें इन गलतियों का अहसास हुआ, उसे छोड़ दिया और फिर कभी नहीं दोहराया |
विलायत में पढाई
गाँधीजी ने विलायत में जाकर बैरिस्टर की पढ़ाई पूरी की | ‘‘मैं अपने सदाचार से सभ्य समझा जाऊँ तो ठीक है, नहीं तो यह लोभ मुझे छोड़ना चाहिए"  यह विचार उनके मन में आया | उन्होंने विलायती रहन-सहन छोड दिया | उनके विलायत के जीवन शैली को इंन्स्टालेशन के जरिए प्रस्तुत किया गया है |
पौधे से वृक्ष में परिवर्तन
बचपन की कहानियों, अन्य घटनाओं से सबक सीख कर गाँधीजी ने सत्य और अहिंसा को अपना लिया | यह छोटा पौधा धीरे-धीरे एक विशाल वृक्ष मे बदलते गया | इस अनूठे वृक्ष की छाया में बैठकर आप  दृक्-श्रव्य प्रस्तुति के माध्यम से इस का अनुभव कर सकते हैं |
रंगभेद के खिलाफ आन्दोलन
दक्षिण अफ्रीका में गाँधीजी को रंगभेद का अनुभव हुआ | उसको मैपिंग प्रोजेक्शन तथा एनिमेशन टेक्नालॉजी के जरिए दिखाया गया है | पीटर मेरित्सबर्ग मे ट्रेन से धक्का मार कर  उतारने की घटना का उन पर गहरा असर हुआ | जिससे प्रेरित होकर उन्होंने रंगभेद के खिलाफ आन्दोलन छेड दिया |
चम्पारन में सेवाकार्य
दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद गाँधीजी समाज सेवा तथा स्वातंत्रता आन्दोलन में जुट गये | अहमदाबाद के साथ उन्होंने बिहार के चम्पारन की तिनकठिया प्रथा को जड़ से मिटा दिया | इस खण्ड में प्रदर्शित  डिस्प्ले पैनलों के जरिए स्वतंत्रता आन्दोलन में उनके प्रयासों तथा आश्रम के कार्यों का आप अनुभव कर सकते हैं |
जालियाँवाला  बाग हत्याकाण्ड
पहले गाँधीजी  का मानना था कि, अंग्रेजों की हुकूमत से ही हमारे देश का भला हो सकता है | लेकिन अमृतसर के जालियाँवाला बाग में हुई हिंसा के बाद उनकी सोच में बदलाव आया और उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ असहयोगआन्दोलन छेड़ दिया |
स्वदेशी को बढावा
जालियाँवाला बाग में हुए नर संहार के बादअसहयोग आन्दोलन धीरे-धीरे व्यापक होता गया | इसमें विदेशी कपड़ों की होली जलाई जाने लगी | जिससे भारतीयों में स्वदेशी को अपनाने की भावना जगी |
एकांत की राह
धीरे-धीरे सभी विचारधाराओं के लोग स्वतंत्रता आन्दोलन से जुडते चले गये | कुछ लोगों का मानना था कि, हिंसा से ही हमें आजादी मिल सकती है | इस सोच कारण अनेक क्षेत्रों हुई हिंसा से निराश होकर  उन्होंने आन्दोलन को रोक दिया और एकांत में चले गए | उनको पक्का विश्वास था कि, केवल अहिंसा का मार्ग ही देश को आजादी दिला सकता हैं |
करों का बोझ
अंग्रेजों द्वारा लगाये  गये  करों से आम आदमी बदहाल था | जिसके कारण उनके मन में अंग्रेजों के खिलाफ असंतोष बढता गया | इस खण्ड में प्रदर्शित की हुई शिल्पकृति में आम आदमी करों के बोझ से  दबता दिखाया गया है | इसी दौरान गाँधीजी ने दांडी मार्च भी  निकाला था |
सत्य ही ईश्वर है
स्वतंत्रता आन्दोलन के दृश्य, गाँधीजी के जीवन से जुडी घटनाओं को श्वेत-श्याम तस्वीरों के जरिए प्रस्तुत किया है | काले चौकोर स्तंभ पर सत्य से सम्बंधित उनकी पक्तियां उकेरी हुई है | कस्तुरबा गाँधीजी के देहांत पर गाँधीजी के मनःस्थिति की एक चित्र के माध्यम से सजीव किया गया है |
चरखा गैलरी
अंत में, एक चरखा गैलरी है | इसमें नऐ-पुराने  ढंग के कई चरखे रखे हुए है | समयानुसार चरखों का परिवर्तन यहाँ  देखने को मिलता है | साथ ही Hyper Realistic पध्दति से विकसित की हुई गाँधीजी की सजीव शिल्पकृति भी यहाँ है |
बच्चों से प्रेम
ऑडिटोरियम की बाहरी दीवार पर गांधीजी बच्चों से कितना प्रेम करते थे,  इसका अनूठा चित्र उकेरा हुआ है |
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 जानकारी हेतू लिखें -  khoj.gandhiji.ki@gmail.com
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